Jindagi se mulakat - 1 in Hindi Fiction Stories by Rajshree books and stories PDF | जिंदगी से मुलाकात - भाग 1

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जिंदगी से मुलाकात - भाग 1

हा ठीक है, कल मुझे दाल सब्जी दूध लेकर आना है।
अरे यार! कल तो मुझे ऑफिस के भी कपडे धोने है। इन्हे भी लिस्ट में शामिल कर लेती हुँ।
अरे हा,नंदिनी के पास जो ब्लाउज सिलने को डाला था वो भी तो वापस लाना था आज श्याम को, अच्छा हो अगर सिलके हो गया हो तो।
रिया एक डायरी में कल जो भी काम करने है उसकी
टु डू लिस्ट बना रही थी।
शाम के चार बज रहे थे आकाश में बदल घिर आए थे।
उपर से बिजली की कड़कने की आवाजे आ रही थी।
लोगो के बिच काम जल्दी निपटाने की हड़कंपी मची हुई थी,बच्चे कुछ ज्यादा ही खुश हो रहे थे।
तभी डायरी में लिस्ट बनाते हुए रिया दुध बंद करने किचन की और गई, किचन बालकनी से काफी दुर नहीं था।
काले बादलो ने सूरज को पूरी तरीके से ढक लिया हो, ठण्डी सर्द हवाएं चल रही हो और अगर इस मौसम में कोई गरमागरम कॉफ़ी पिला दे तो फिर क्या कहने।
वैसे रिया कॉफ़ी रोज ही पीती है लेकिन खाने की सुंगध नाक में तब ज्यादा घुसती है जब करने के लिए कोई ज्यादा काम न हो और बारिश की दस्तक हमारे घर पे आ रुकी हो।
रिया ने कबर्ड से कॉफ़ी की बोतल निकाली खुदके के लिए ब्लैक कॉफ़ी की जगह मिल्क कॉफ़ी बनायी।
जब तक वो कॉफ़ी बना रही थी बारिश की बूंदो ने दस्तक देना शुरू कर दिया था।
कॉफ़ी बनाकर वो एकबार फिर से बालकनी में आ गई।
टेबल पर कॉफ़ी रखी और कॉफ़ी पीते पीते एक बार फिरसे अपने कामो में खो गई।
"एक काम करती हुँ, मंडे को बॉस को प्रेजेंटेशन देना है थोड़ा लैपटॉप पे काम कर लेती हुँ।"
वो थोड़ी कॉफ़ी पीकर मग और डायरी को निचे रखकर जा रही थी की तभी बारिश की बूंदो ने हल्कासा जोर पकड़ लिया।
बच्चे बारिश में नाच रहे थे, लोग अपनी गाड़ी लेकर सटाके से घर की और जा रहे थे, पैदल चलने वाले लोग घरो की दुकानो की छत का सहारा लेते हुए घर की और तेज़ी से जाने की कोशिश कर रहे थे।
रिया जहाँ बैठी थी वो जगह बूंदो की नजर से काफी दुर थी लेकिन उसके बावजूद उन्होंने ठान लिया की वो रिया के बालकनी में दस्तक देंगे ही।
बारिश आने के कारण सारे बच्चे झूम रहे थे।
रिया भी पहेली बार सब काम छोड़ कर बारिश का लुफ्त उठा रही थी।
हाथ में कॉफी का मग पकड़ा जो काफी देर ना पकड़ने की वजह से बाहर से गर्म और अंदर से ठंडा होता जा रहा था।
बारिश की उस एक पल ने रिया का अतीत जो कही यादों की धूल में पडा हुआ था, उसे बाहर लाकर आईने की तरह साफ कर दिया।
"रिया मैं तुमसे कह रहा हूं , यह ट्रांसफर रुकवा दो।
मेरी ऑलरेडी नौकरी है तुम यहां एंप्लॉय बन कर
अच्छा कमा लेती हो।"
"देखो जीवन यह मेरे लिए बहुत बड़ी अपॉर्चुनिटी है। कंपनी ने मुझे ब्रांच मैनेजर चुना है।"
"तो क्या हुआ?" इतना कहकर जीवन उसकी तरफ अचंभे से देखने लगा।
"तो क्या हुआ!? मेरे पाच साल की मेहनत दांव पर लगी है।
हमारे दो पल के रिश्ते के लिए मैं पाच साल की मेहनत पर पानी नहीं फेर सकती।"
"दो पल का रिश्ता!?" जीवन को सुनकर झटका लगा।
जिंदगी में दर्द तब ज्यादा नहीं होता जब हमारे शरीर के अंगों को दर्द नें चीर डाला हो, दर्द ज्यादा तब होता है जब घाव अपने ही लोगों ने दिल पर लगाए हो।
आज जीवन का हाल कुछ ऐसा ही था जीवन को जितना यह बात सुनकर झटका ना लगा हो कि रिया उसे छोड़कर हमेशा हमेशा के लिए हैदराबाद जा रही है, जितना यह जानकर सदमा लगा कि रिया ने सात साल के रिश्ते को दो पल का बताकर उसे कागज की तरह हल्का बना दिया था।
जीवन ने रिया को खुद की तरफ खींचते हुए उसके दोनों बाजूओ को पकड़ लिया- "हमारा रिश्ता सिर्फ दो पल का है? पाच साल, पाच साल बिताएं हमने एक साथ।"
"पिछले दो सालों से लिविंग में रह रहे हैं।"
रिया को सब कुछ पता था फिर भी उसका जिद्दी दिल अपनी ही जिद पूरी करना चाहता था।
उसने जीवन की आंँखों में आंखें ना डालते हुए उससे नजरे चुराते हुए कहा-"लिविंग में रहते हैं इसलिए एक दूसरे पर उसकी बिना मर्जी से हर बार जोरजबरदस्ती करेंगे ऐसा तो कुछ नहीं है।"
"Woman has also independence to choose her right path."
"जबरदस्ती!?" इस शब्द से जीवन को ऐसा लगने लगा कि मानो उसके कानों में किसीने शीशा गर्म करके डाल दिया हो।
जीवन रिया के कंधे से अपना हाथ छुड़ा लेता है जैसे उसने एक ही झटके में अपने सारे हक उसपर खो दिए हो।

जीवन को अब यह सब सहना मुश्किल हो रहा था , उसके आंँखों ने आंसुओं का रास्ता पकड लिया था कि तभी उस आंसुओं को रोकते हुए उसका गला भर आया।
"जाओ यहां से रिया खुश रहो, अपनी जिंदगी में।"
रिया अपनी सूटकेस का हैंडल पकड़ चल देती है।
जीवन जाते हुए सिर्फ उससे इतना कहता है- "जबरदस्ती का रिश्ता नहीं था हमारा, बस जो कुछ भी पल गुजरे उसे प्यार समझ बैठा था मै।"
रिया जीवन के मुंह पे दरवाजा बंद कर देती है।

इतना दर्द रिया का दिल सहज नहीं पाता और रिया को अपने ही यादों से जगा देता है।
रिया की आंँखों में आंसुओं के अलावा और कुछ नहीं होता कुछ भी नहीं। आंँखें पोछी तो उसने देखा उसके टु डू लिस्ट के सारे अक्षर धुधंले पड़ चुके थे,बारिश की पानी की वजह से।
गिली पड़ी डायरी को उसने बारिश से छुपाकर अंदर टेबल के नीचे रख दिया।